मैं चढ़ता रहा मोहब्बत की सीढ़ियों से मंजिल कितनी दूर है आज तक समझ नहीं पाया वह इशारे कर के बुलाती रही यूं ही चलते चलते वर्षों गुजर गया मंजिल कितनी दूर है आज तक समझ नहीं पाया
उसकी बेपरवाह मोहब्बत ने मेरे चाहतों की कश्ती कश्ती डूबा दिया सच कह रहा हूं ख्याल इस तरह रखा कोई कमी नहीं छोड़ा बेवफा होने का कारण समझ नहीं आया अपनी बर्बादी में घुट घुट के जिए जा रहा हूं SHAYARI SANGRAH 1. Shayari sangrah 2. हिंदी शायरी 3. हिंदी शायरी 4. हिंदी मजेदार - शायरी संग्रह 5. कविता 6. नई शायरी 7. मजेदार - शायरी संग्रह 8. मनोज कुमार 9. रस भरी शायरी 10. मोहब्बत भरी - शायरी संग्रह 11. विशाल शायरी संग्रह 12. शायरी - मस्ती 13. शायरी का जलवा 14. शायरी का तड़का 15. शायरी डायरी 16. शायरी संग्रह मनोज कुमार गोरखपुर 17. शायरी मनोज कुमार गोरखपुर 18. शायरी मनोरंजन 19. शायरी मनोरंजन 20. शायरी-SHAYARI 21. शायरी-दिल के जज्बात 22. हिंदी नई शायरी 23. हिंदी मसाला - शायरी संग्रह 24. हिंदी शायरी 25. ह...